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Wednesday 12 November 2014

(13) आव्हान-गज़ल / प्रयाण-गज़ल’(ग) मुस्कुराते रहिये !

(सारे चित्र' 'गूगल-खोज' से साभार) 

‘सूरज’ से कभी जगमगाते रहिये !


‘सितारों’ से कभी टिमटिमाते रहिये !!

 

 

‘अन्धेरे’ की ‘रियासत’ में ‘मशाल’ जैसे-


बनकर के ‘चाँद’ मुस्कुराते रहिये !!

 

 

‘पतझर’ है कभी, तो ‘बहार’ है कभी-


‘कोशिशों’ के ‘पौधे’ लगाते रहिये !!

            

 मौजूदा ‘वक्त’ की ‘खुशी’ की ख़ातिर-


‘अतीत’ के ‘दर्द’ कों भुलाते रहिये !!

 

 

‘धूल’ में सने हों जो ‘प्यार’ के मोती’-


उठा कर, गले से लगाते रहिये !!

 

 

‘मिठास’ है, इनकी ‘चहक’ में कितनी !


‘परिन्दे प्यार के’ बुलाते रहिये !!

 

 

हम तो हँसेंगे, है “प्रसून” की ‘फ़ितरत’ !


आप चाहे ‘नश्तर’ चुभाते रहिये !!


                           

 

 

 

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