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Wednesday 29 October 2014

(11) ‘कंगाल अमीरी’(ग) ‘दिल’ का ‘अमीर’ !

                                                           (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)
                                                                                                       
जिसकी आँखों ‘मानवता’ का ‘नीर’ होता है !
वह‘ मुफ़लिस’ भी, ‘दिल’ का तो ‘अमीर’ होता है !!
बड़े-बड़े ‘फ़ौलादी’ जिस्मों को काट देता जो-
लोहे का छोटा टुकड़ा ‘पतगीर’ होता है !!
‘शेर’, ज़ेर ‘फ़ील’ से है, यह तो माना है लेकिन-
वही तमाम ‘जंगल’ में असीर होता है !!
         

 ‘कोयले’ की ‘खान’ में भी, ‘काला’ नहीं होता जो-

इसी लिये तो ‘हीरा’ बेनज़ीर होता है !!

 बहुत बड़े ‘हाथी’ को भी, सहज ही जो मार दे-

छोटा सा ही, विष से बुझा तीर होता है !!

           

 ‘टस से मस’ करेगा क्या, ’तूफ़ान’ उसे कभी भी ?

‘इरादा’ जिसका ‘पत्थर’ की ‘लकीर’ होता है !!

 “प्रसून” इसकी ‘कुव्वत’ को, देखो तो जान जाओगे-

‘शाहों’ का भी ‘शाह’ इक ‘फ़कीर’ होता है !!

         

पतगीर=छेनी, बेनज़ीर=अतुलनीय’ फ़ील=हाथी, कुव्वत=ताक़त

ज़ेर=छोटा

 

2 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30/10/2014 को चर्चा मंच पर चर्चा -1782 में दिया गया है
    आभार

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  2. Waah ji lajawab ek ek sher me dum hai... Kasam se zabardast !!

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