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Friday 19 September 2014

(8) आग ! (क) ‘दावानल’ (ii) ‘चन्दन-वन’ की ‘आग’ !

(सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

                                         

संघर्षों’ से हिलीं ‘डालियाँ’, ‘चन्दन-वन’ में ‘आग’ लगी !

‘कलियाँ-सुमन-कोंपलें’ झुलसीं, इस ‘मधुवन’ में ‘आग’ लगी !!

 

 

‘शीत फुहारें’ बरसाते हैं, मानों रोते हैं तप कर !

तड़प रहीं ‘बिजली’ की ‘लपटें’, यों हर ‘घन’ में ‘आग’ लगी !!

 

 

विप्लव ‘लोभ-कामनाओं’ से, ‘शीतल नेह’ तपे सारे !

सुलग रहा है ‘समाज’ सारा, सारे ‘वतन’ में ‘आग’ लगी !!

                                                 
                          

 

 ‘काम-केलि’ की ‘भूख’ जग गयी, ‘सम्बन्धों’ में हुई ‘जलन’ !

अनियंत्रित ‘वासना-अग्नि’ से, हर ‘यौवन’ में ‘आग’ लगी !!

 

 

‘मेहनत’ से खाने वालों से, ‘कर्म-हीनता’ जलती है-

‘द्वेष-ईर्ष्या’ के ‘संतापों’, से हर ‘मन’ में ‘आग’ लगी !!

 

 

टूटे ‘छल-प्रपंच’ के ‘पत्थर’ से ‘सच्चाई’ के ‘दर्पण’ !

‘दुराचार’ के‘ ‘अंगारों’ से, ‘चाल-चलन’ में ‘आग’ लगी !!

 

 

महके हुए ‘परागों’ वाले, हर “प्रसून” की ‘गन्ध’ मिटी-

‘लू’ की ‘गरमाहट’ से देखो, ‘मलय-पवन’ में ‘आग’ लगी !!


           

 

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (20-09-2014) को "हम बेवफ़ा तो हरगिज न थे" (चर्चा मंच 1742) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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