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Tuesday 2 September 2014

(6) बाज (क) शान्ति का विभंजन !


 (सरे चित्र 'गूगल-खोज' से साभार)

                                          

मधुवनों में शान्ति का होता विभंजन देखिये ! 

    

डरे हैं  ‘बाजों से कितने, भोले खंजन देखिये !!


हिरण भागे, ‘शशक दुबके और अब तो थम गये-

तितलियों की थिरकनें, ‘भ्रमरों के गुंजन देखिये !! 


न्याय’ तोलें किस तरह, इंसाफ की दूकान’ में 

डगमगाया है 'तराजू' का समंजन देखिये !!       


दर्द पाकर रो रही है,तर हुए दोनों नयन -

सभ्यता की सुन्दरी का बहा अंजन देखिये !!


 आग ‘जंगल’ में लगी है, आँधियों’ के ज़ोर से -

रगड़ खा के, हवाओं’ से जला ‘चन्दन’ देखिये !!

 
 कहाँ जाएँ गुनगुनाने, गीत गाने ऐ "प्रसून"

        बाग में हर ओर ‘चिड़ियों’ का है क्रन्दन देखिये !!

  


शब्द कोष 


   विभंजन=टूट-फूट, समंजन=सन्तुलन, क्रन्दन=दर्द भरी चीख  

 

 

 




















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