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Saturday 21 July 2012

गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह)-(ल) बंजर दिल(२) पठारों से हृदय

 
पठारों से हृदय के पथरीले मंज़र देखिये |
दया, करुणा के लिये ये हुए ये बंजर देखिये ||
 
बुलबुलों,मैनाओं ने है विवश समझौता किया -
सोने, चाँदी के बड़े मजबूत पिंजर देखिये ||    
 Q    


पंकजों में छुपे भँवरे, तितलियाँ व्याकुल हुये-
ताल में घुस आये भूखे कई कुंजर देखिये ||

   
मीत बनने के लिये, नाटक रचाने आ गये -
आस्तीनों में छुपाये लोग खंज़र देखिये ||



उठी हैं तूफ़ान लेकर कई पछुवा आँधियाँ-
सभ्यता की छतरियाँ हैं हुई जर्जर देखिये ||
 

वंचना की पूतना है 'प्रेम' को छलने चली -
बजाती मायाविनी माया की झांझर देखिये ||
 
हरे बागों,बगीचों, वन वितानों की कमी से -
बसन्ती मौसम भी लगता, आज पतझर देखिये || 


मुर्झा गये हैं आस्था की क्यारी के ये "प्रसून"
हुए निर्जल भावना के कई निर्झर देखिये ||

 
 

Friday 20 July 2012

गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह)-(ल) बंजर दिल(१)दिल की धरती



बंजर दिल की धरती।


प्यार का फूटा नहीं है ,एक अंकुर देखिये।

दिल की धरती हो गयी है,कितनी बंजर देखिये।।



खाद,पानी 'प्रेरणा' के हो गये हैंसब विफल-

आचरण की स्थली अब बहुत ऊसर देखिये||
   
  
सबके जज्वातों की चोटों का असर मुझ पर हुआ-

दर्द का छलका है आँखों में समुन्दर देखिये ||
  

कल तलक थीं रोशनी की धुंधली उम्मीदें मगर-

आज फिर छाया हुआ कोहरे का मंज़र देखिये||
  

मैंने सोचा था कि उनको दोस्त का दूं मर्तबा-

पर उन्होंनेपीठ पर मारा है खंज़र देखिये||
  

'प्रसून'अंगों से लगे जो गगन बेली की तरह-

जोड़ कर सम्बन्ध पीते,लहू शातिर देखिये||

Thursday 19 July 2012

गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह)-(र) बाज)-(२)आतंक (एक अप्रकट निहित सत्य)


  
                                                                          
आतंक जैसे उड़ते हुये चील हुए हैं |
जनता के भोले लोग अबाबील हुए हैं ||
 
जिनके दिलों में स्नेह का न् नीर बचा है -
जिनके नयन मानो सूनी झील हुये हैं ||
 

हैं चित्त जिनके सत्य के सु-ज्ञान से खाली- 
मानो अँधेरे में बुझे कन्दील हुये हैं ||  
  
 
इंसानियत के पाँव में वे लोग चुभे हैं -
रस्ते में पड़ी जंग लगी कील हुये हैं ||


कर के कुतर्क गर्क नर्क कर रहे समाज-
ये लोग ज्यों 'शैतान' के वकील हुये हैं ||
  

 

"प्रसून" प्रीति-बेलि की डालों पे जो खिले -
वे वासना-पराग से अश्लील हुये हैं || 
 

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