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Sunday 1 July 2012

गज़ल-कुञ्ज (गज़ल-संग्रह)-(स)कंटाल (३)-कंटकों की डालियाँ

              





फाख्तों के,तितलियों के पर कटे घायल हुईं |



कण्टकों की डालियाँ कुछ इस तरह पागल हुईं ||




 



बाग में तारों सी खिलीं, सुमन, कलियाँ सुस्त हैं -  



अनमनी उदास, दुखिता दया के क़ाबिल हुईं ||







तेज झोंकों से भरी कुछ हवायें बदमस्त सी-



झूमती हैं, डगमगातीं ,और भी चन्चल हुईं ||  







हर झरोखे से उठी है, चीख क्रन्दन से भरी-



लहू के प्यासे मनों में इस तरह खलबल हुई ||


   



मछलियों को भय हुआ, वे तड़फड़ाने सी लगीं-



शान्त,सुन्दर झील के तल में विषम हलचल हुई ||


    

 



स्नेह के सम्बन्ध वाली रसिक प्रेमी टोलियाँ -



'काम'के तूफ़ान,हिंसा- 'कहर के बादल' हुईं ||



    



अंधेरों ने उजालों पर कर लिया अधिकार यों -



"प्रसून"मेरी चाहतें, मायूस यों हर पल हुईं ||




            


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