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Sunday 8 July 2012

गज़ल-कुञ्ज(गज़ल संग्रह)-(य)उकाव-कबूतर-(२)मायूस परिन्दे )

 

ये परिन्दे प्यार के कितने हुए मायूस हैं |
उकाबों का डर इन्हें कितना हुआ महसूस है || 
 
देखने में बाड़, ऊपर से बड़ी मजबूत है |
हकीक़त में यह बड़ी कमज़ोर, गलती फूस है ||




अपने घर के लोग अपने घर से ही बागी हुये -
बन गये ये शत्रुओं के घरों के जासूस हैं ||
   
आ गया कोई जलजला शान्ति के इस सदन में -
छतों से गिरने लगे कुछ टूटते फ़ानूस हैं || 
  
खा रहे हैं देश का जी भर के धन औ अन्न ये -
त्याग करने के लिये पर सभी तो कंजूस हैं ||


"प्रसून" कुचले गये, कलियाँ डाल से टूटीं गिरीं -
बाग में हैं घुसे पापी दरिन्दे मनहूस हैं ||  
   

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